माता-पिता या जीवनसाथी के साथ जॉइंट अकाउंट खोल रहे हैं? ध्यान रखने लायक 5 ज़रूरी नियम
परिवार के भीतर पैसों का प्रबंधन हमेशा एक संवेदनशील विषय होता है। चाहे आप बुज़ुर्ग माता-पिता की देखभाल कर रहे हों, पति-पत्नी मिलकर खर्च चला रहे हों, या परिवार की वित्तीय योजना साथ में बना रहे हों—बैंक खाते का ढांचा बहुत मायने रखता है। इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कई लोग जॉइंट बैंक अकाउंट खोलना पसंद करते हैं।
जॉइंट अकाउंट में दो या उससे अधिक लोग एक ही खाते को संचालित कर सकते हैं। इससे खर्चों को संभालना आसान हो जाता है, घर के बिल समय पर चुकाए जा सकते हैं, और जरूरत के समय पैसे तुरंत उपलब्ध रहते हैं। पति-पत्नी अक्सर घरेलू खर्चों के लिए जॉइंट अकाउंट का प्रयोग करते हैं, वहीं वयस्क बच्चे अपने बुज़ुर्ग माता-पिता के लिए भी इसे उपयोगी पाते हैं।
लेकिन याद रखें—जॉइंट अकाउंट एक सामान्य बैंक अकाउंट जैसा नहीं है। इसके अपने कानूनी, संचालन और टैक्स से जुड़े नियम होते हैं। अक्सर लोग इन नियमों को समझे बिना अकाउंट खोल देते हैं, और बाद में विवाद, फंड फ्रीज़, उत्तराधिकार संबंधी समस्याएँ या टैक्स की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
इसलिए, जॉइंट अकाउंट खोलने से पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि यह कैसे काम करता है और किन नियमों का पालन करना आवश्यक है।
यह लेख आपको जॉइंट अकाउंट खोलने से पहले ध्यान रखने योग्य 5 जरूरी नियम सरल और आसान भाषा में समझाता है। विशेष रूप से भारतीय बैंकिंग सिस्टम में, जहाँ ऑपरेशन मोड गलत चुनने से गंभीर दिक्कतें आ सकती हैं।
नियम 1: जॉइंट अकाउंट के अलग-अलग ऑपरेशन मोड को समझें
भारत में बैंक जॉइंट अकाउंट के लिए अलग-अलग ऑपरेशन मोड प्रदान करते हैं। ये मोड तय करते हैं:
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पैसा कौन निकाल सकता है?
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किसे किस ट्रांज़ैक्शन की अनुमति है?
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किसी एक की मृत्यु के बाद खाता किसके नियंत्रण में जाएगा?
अकाउंट खोलने से पहले इन मोड को समझना बेहद जरूरी है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।
1. Either or Survivor (ईदर या सर्वाइवर)
यह सबसे लोकप्रिय मोड है।
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दोनों अकाउंट होल्डर स्वतंत्र रूप से खाते को संचालित कर सकते हैं।
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किसी भी ट्रांज़ैक्शन के लिए दूसरे की अनुमति की जरूरत नहीं होती।
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एक व्यक्ति की मृत्यु होने पर दूसरा खाते को सामान्य रूप से चला सकता है।
यह मोड सुविधा तो देता है, लेकिन इसके लिए दोनों के बीच बहुत गहरा भरोसा होना आवश्यक है।
2. Joint (जॉइंट)
यह मोड तब उपयुक्त है जब दोनों लोग बराबर का नियंत्रण और पारदर्शिता चाहते हों।
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हर ट्रांज़ैक्शन दोनों की अनुमति से ही होगा।
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चेक क्लियरेंस, निकासी या ट्रांसफर—सबके लिए दोनों के साइन जरूरी।
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किसी एक की मृत्यु पर खाता फ्रीज़ हो जाता है और कानूनी दस्तावेज जमा करने के बाद ही संचालित किया जा सकता है।
यह सुरक्षित तो है, लेकिन आपात स्थिति में कठिन हो सकता है।
3. Former or Survivor (फॉर्मर या सर्वाइवर)
यह मोड ज्यादा-तर माता-पिता और बच्चों के मामलों में उपयोग किया जाता है।
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पहला अकाउंट होल्डर (Former) अपने जीवनकाल में अकाउंट को पूरी तरह नियंत्रित करता है।
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दूसरा होल्डर (Survivor) तभी खाते को संचालित कर सकता है जब पहला होल्डर नहीं रहे।
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इससे माता-पिता को भरोसा मिलता है कि उनके रहते बच्चे पैसे नहीं निकाल पाएंगे, लेकिन भविष्य में खाते तक उनकी पहुंच आसान हो जाएगी।
नियम 2: शुरू से ही नॉमिनी जोड़ें
कई लोग सोचते हैं कि जॉइंट अकाउंट में नॉमिनी की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि मृत्यु के बाद पैसा अपने-आप दूसरे होल्डर को मिल जाएगा। लेकिन यह हर बार सच नहीं होता।
नॉमिनेशन क्यों जरूरी है?
अगर:
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दोनों होल्डर की मृत्यु हो जाए,
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या सर्वाइवर किसी कारण से खाते को ऑपरेट न कर पाए,
तो नॉमिनी होना बहुत मदद करता है।
नॉमिनी होने से:
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बैंक सीधे उसे पैसा दे सकता है,
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कानूनी प्रक्रिया तेज हो जाती है,
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उत्तराधिकार में अनावश्यक देरी नहीं होती।
नॉमिनी न होने पर:
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कानूनी उत्तराधिकारी को दस्तावेज़ देने पड़ते हैं,
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अक्सर "सक्सेशन सर्टिफिकेट" लेना पड़ता है,
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प्रक्रिया में हफ्तों या महीनों का समय लग सकता है।
आजकल नॉमिनी जोड़ना ऑनलाइन भी बहुत आसान है। इसलिए अकाउंट खोलते समय ही नॉमिनी सेट करना सबसे समझदारी भरा कदम है।
नियम 3: जॉइंट अकाउंट पर टैक्स कैसे लगता है, इसे समझें
कई लोग मानते हैं कि जॉइंट अकाउंट पर टैक्स पहले होल्डर पर लगता है। लेकिन आयकर विभाग का नियम अलग है—
टैक्स इस बात पर लगता है कि पैसा किसने कमाया है, न कि नाम किसका पहले है।
यदि किसी एक व्यक्ति ने पैसा कमाया और खाते में जमा किया है, तो उस पैसे पर मिलने वाले ब्याज का टैक्स भी उसी व्यक्ति को देना होगा—भले ही निकासी कोई और करे।
उदाहरण: पति-पत्नी
यदि पति ने 5 लाख रुपये खाते में जमा किए और पत्नी ने उस पैसे का उपयोग किया,
तो भी ब्याज की टैक्स देनदारी पति के नाम पर ही होगी।
उदाहरण: भाई-बहन या दोस्त
यदि दो लोग साझा खाते का उपयोग कर रहे हैं:
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दोनों को अपनी-अपनी जमा राशि का रिकॉर्ड रखना होगा,
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ब्याज आय को अलग-अलग अपने ITR में दिखाना होगा।
स्पष्टता न होने पर आयकर विभाग पूरे ब्याज को एक व्यक्ति की आय मान सकता है, जिससे टैक्स विवाद पैदा हो सकता है।
नियम 4: आपात स्थिति के लिए पहले से योजना बनाएं
जॉइंट अकाउंट आपात स्थिति में मदद जरूर करता है, लेकिन इससे जुड़े कुछ जोखिम भी हैं।
1. विवाद होने पर खाता फ्रीज़ हो सकता है
यदि किसी एक होल्डर ने बैंक में लिखित शिकायत दे दी,
तो बैंक बिना देरी किए पूरा खाता फ्रीज़ कर देता है।
इसका मतलब:
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कोई पैसा नहीं निकाल सकता,
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कोई ट्रांज़ैक्शन नहीं होगा,
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खाता तब तक बंद रहेगा जब तक विवाद सुलझ नहीं जाता।
यह नियम सुरक्षा जरूर देता है, लेकिन परिवार के चल रहे खर्च एकदम रुक सकते हैं।
2. मृत्यु के बाद खाते का क्या होता है?
यह पूरी तरह ऑपरेशन मोड पर निर्भर करता है:
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Either or Survivor:
बचे हुए होल्डर को तुरंत पूरा एक्सेस मिल जाता है। -
Joint:
खाता तुरंत फ्रीज़ हो जाता है।
दस्तावेज़ जमा करने के बाद ही एक्सेस मिलता है। -
Former or Survivor:
पहला होल्डर रहते दूसरा खाते का उपयोग नहीं कर सकता।
मृत्यु के बाद सर्वाइवर को एक्सेस मिलता है।
यदि खाते से रोज़मर्रा के बिल या मेडिकल खर्च चलते हैं,
तो इस नियम की अनदेखी मुश्किल पैदा कर सकती है।
नियम 5: बाद में अकाउंट की सेटिंग बदली जा सकती है—लेकिन प्रक्रिया आसान नहीं होती
अधिकतर लोग सोचते हैं कि मन बदलने पर बाद में मोड बदल देंगे।
तकनीकी रूप से यह संभव जरूर है, लेकिन इतना सरल नहीं।
क्या-क्या बदला जा सकता है?
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Joint से Either or Survivor
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नॉमिनी
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एड्रेस
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KYC
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होल्डर का क्रम (कुछ मामलों में)
लेकिन मुश्किलें ये हैं:
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सभी अकाउंट होल्डर के साइन जरूरी होते हैं।
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कई बैंक ग्राहकों को शाखा में बुलाते हैं।
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कुछ बदलावों के लिए अतिरिक्त फॉर्म और सत्यापन करना पड़ता है।
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यदि संबंधों में तनाव है, तो बदलाव करना लगभग असंभव हो जाता है।
इसीलिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि खाता खोलते समय ही
सही मोड, सही नॉमिनी और सही नियम तय कर लें।
निष्कर्ष: जॉइंट अकाउंट सुविधा है—लेकिन सोच-समझकर उपयोग करें
जॉइंट अकाउंट परिवार की वित्तीय व्यवस्था को काफी आसान बना सकता है। इससे:
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खर्च प्रबंधन सरल होता है,
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पारदर्शिता बनी रहती है,
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आपात स्थिति में पैसा तुरंत उपलब्ध रहता है।
लेकिन तभी, जब अकाउंट के नियम सही तरीके से सेट किए गए हों।
इसलिए जॉइंट अकाउंट खोलने से पहले:
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ऑपरेशन मोड समझें,
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नॉमिनी जोड़ें,
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टैक्स नियम जानें,
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आपात स्थिति की योजना बनाएं,
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और भविष्य में बदलाव की प्रक्रिया भी समझें।
एक छोटा-सा निर्णय भविष्य में बड़ी परेशानी या बड़ा आराम दोनों दे सकता है।
इसलिए जॉइंट अकाउंट केवल पैसा साझा करने का तरीका नहीं है—
यह जिम्मेदारी और भरोसे का समझदारी भरा प्रबंधन है।

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