मुफ्त रिवार्ड्स का असली सच: क्यों क्रेडिट कार्ड उतने उदार नहीं जितने दिखते हैं

पहली नज़र में क्रेडिट कार्ड किसी वरदान से कम नहीं लगते। वे आपको तुरंत खरीदारी करने की ताक़त देते हैं, हर ख़र्च पर कैशबैक, मुफ़्त एयर माइल्स, शॉपिंग वाउचर और यहाँ तक कि एयरपोर्ट लाउंज जैसी लग्ज़री सुविधाएँ भी देते हैं। बैंक इन्हें एक “लाइफ़स्टाइल अपग्रेड” के रूप में पेश करते हैं — मानो यह समझदारी से खर्च करने का नया तरीका हो। लेकिन सच यह है कि ये रिवार्ड्स कभी भी मुफ़्त नहीं होते। वास्तव में ज़्यादातर लोग जितना पाते हैं, उससे कहीं ज़्यादा चुकाते हैं। पॉइंट्स और पर्क्स की चमक के पीछे एक ऐसा बिज़नेस मॉडल छिपा है, जो आपको ज़्यादा ख़र्च करने, भुगतान टालने और अंततः 30–40% वार्षिक ब्याज चुकाने पर मजबूर कर देता है। आपको मिलने वाला कैशबैक बैंकों की कमाई का केवल एक छोटा हिस्सा है। असल में, आप ही अपनी “मुफ़्त” सुविधाओं का खर्च उठाते हैं — अक्सर बहुत भारी क़ीमत पर। मुफ़्त पैसे का भ्रम ज़्यादातर लोग क्रेडिट कार्ड की ओर सबसे पहले कैशबैक और पॉइंट्स के लालच में आकर्षित होते हैं। मान लीजिए आपने कार्ड से ₹10,000 ख़र्च किया और उस पर 1% कैशबैक मिला — यानी ₹100। यह सुनने में तो मुफ़्त पैसे जैसा लगता...